दाणं पूया सीलं, उववासं बहुविहंपि खवणं पि ।
सम्मजुदं मोक्खसुहं, सम्म विणा दीहसंसारं ॥10॥
दानं पूजा शीलम्, उपवास: बहुविधमपि क्षपणमपि ।
सम्यक्त्वयुतं मोक्षसुखं सम्यक्त्वं विना दीर्घसंसार:॥
अन्वयार्थ : सम्यक्त्व-युक्त (होकर ही) दान, पूजा, शील, (ब्रह्मचर्य), उपवासव अनेक प्रकार के कर्मक्षय की क्रियाएँ मोक्ष-सुख (की हेतु) हैं । किन्तु सम्यक्त्व के बिना(तो) दीर्घ (दुरन्त) संसार (ही) है ॥10॥