दाणं पूया मुक्खं सावयधम्मे ण सावया तेण विणा ।
झाणज्झयणं मुक्खं जदिधम्मे तं विणा तहा सोवि ॥11॥
दानं पूजा मुख्यं श्रावकधर्मे न श्रावका: तेन विना ।
ध्यानाध्ययनं मुख्यं यतिधर्मे तद् विना तथा सोऽपि॥
अन्वयार्थ : श्रावक-धर्म में दान व पूजा । ये मुख्य (कर्तव्य) हैं, इसके बिना वेश्रावक (ही) नहीं हैं । मुनि-धर्म में ध्यान व अध्ययन (स्वाध्याय) मुख्य (कर्तव्य) हैं औरइनके बिना वह (मुनि या मुनि-धर्म) भी वैसा ही (अयथार्थ) है ॥11॥