जो मुणिभुत्तवसेसं भुंजदि सो भुंजदे जिणुद्दिठ्ठं ।
संसारसारसोक्खं कमसो णिव्वाणवरसोक्खं ॥22॥
यो मुनिभुक्तावशेषं भुंक्ते स भुंक्ते जिनोद्दिष्टम् ।
संसारसारसौख्यं क्रमशो निर्वाणवरसौख्यम्॥
अन्वयार्थ : मुनि (आदि सत्पात्रों) द्वारा आहार ग्रहण कर लेने के अनन्तर, अवशिष्टरहे (अन्नादि) का जो आहार ग्रहण करता है, वह संसार के सारभूत सुख और क्रमश:निर्वाण (मोक्ष) के परम सुख को भी भोगता है । यह जिनेन्द्र भगवान् का उपदेश है ॥22॥