हिदमिदमण्णं पाणं णिरवज्जेसहिं णिराउलं ठाणं ।
सयणासणमुवयरणं जाणिज्ज देदि मोक्खमग्गरदो ॥24॥
हित-मितम् अन्नं पानं निरवद्यौषधिं निराकुलं स्थानम् ।
शयनासनम् उपकरणं ज्ञात्वा ददाति मोक्षमार्गरत:॥
अन्वयार्थ : मोक्षमार्गी (श्रावक) हितकारी व यथोचित परिमित मात्रा में अन्न-पान, निर्दोष औषधि, निराकुल स्थान, शयन, आसन व (धर्म व संयम के) उपकरण को,उनके औचित्य आदि का ज्ञान प्राप्त करके (ही) देता है ॥24॥