अणयाराणं वेज्जवच्चं कुज्ज जहेह जाणिच्चा ।
गब्भब्भमेव मादा-पिदुच्च णिच्चं तहा निरालसया ॥25॥
अनगाराणां वैयावृत्त्यं कुर्यु: यथेह ज्ञात्वा ।
गर्भार्भकमिव मातापितरौ च नित्यं तथा निरालसका:॥
अन्वयार्थ : अनगारों (मुनियों आदि) की (प्रकृति आदि की) जानकारी(समझदारी) के साथ नित्य एवं आलस्यरहित होकर उनकी उसी प्रकार वैयावृत्त्य करनाचाहिए, जिस प्रकार से इस लोक में माता-पिता अपने गर्भ स्थित (बालक) की (सारसएभाल,पोषण आदि) करते हैं ॥25॥