लोइयजणसंगादो होदि महामुहिरकुडिलदुब्भावो ।
लोइयसंगं तम्हा जोइवि तिविहेण मुच्चाहो ॥42॥
लौकिकजनसङ्गात् भवति महामुखरकुटिलदुर्भाव: ।
लौकिकसङ्गं तस्माद् दृष्ट्वा त्रिविधेन र्मुत॥
अन्वयार्थ : लौकिक (संसार-अनुरक्त) लोगों की संगति से अत्यधिक मुखरतातथा कुटिल दुर्भाव पैदा होते हैं, इसलिए समझ बूझकर मन, वचन व काय से इसे (लौकिक-संगति को) त्याग दें ॥42॥