सम्म विणा सण्णाणं सच्चरित्तं ण होदि णियमेण ।
तो रयणत्तयमज्झे सम्मगुणुक्किठ्ठमिदि जिणुद्दिठ्ठं ॥46॥
सम्यक्त्वं विना सज्ज्ञानं सच्चारित्रं न भवति नियमेन ।
तस्मात् रत्नत्रयमध्ये सम्यक्त्वगुणोत्कृष्टत्वमिति जिनोद्दिष्टम्॥
अन्वयार्थ : सम्यक्त्व न हो तो नियम से न तो सम्यग्ज्ञान होता है और न सम्यक्चारित्र ही होता है । इसलिए रत्नत्रय में सम्यक्त्व गुण की उत्कृष्टता (निर्विवाद) है । ऐसाजिनेन्द्र देव द्वारा कहा गया है ॥46॥