किम्पायफलं पक्कं विसमिस्सिदमोदगिंदवारुणसोहं ।
जिव्हसुहं दिठ्ठिपियं जह तह जाणक्खसोक्खं पि ॥127॥
किम्पाकफलं पयं विषमिश्रितमोदक-इन्द्रायणशोभम् ।
जिउीासुखं दृष्टिप्रियं यथा तथा जानीहि अक्षसौख्यमपि ॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार पका हुआ किम्पाक फल, विषमिश्रित लड्डू और इन्द्रायण फल । येदेखने में सुन्दर होते हैं और जीभ को भी सुख देते हैं (किन्तु परिणाम में दु:खदायी होते हैं),उसी प्रकार इन्द्रिय-सुखों को भी जानें ॥127॥