+ जीव के सम्यक्त्वोत्पत्ति से पूर्व मिथ्यात्व गुणस्थान में होने वाली पांच लब्धियां -
खयउवसमियविसोही, देसणापाउग्गकरणलद्धि य
चत्तारि वि सामण्णा, करणं सम्मत्तचारित्ते ॥3॥
अन्वयार्थ : [खयउवसमिय] क्षयोपशम, [विसोही] विशुद्धि, [देसणा] देशना, [पाउग्ग] प्रायोग्य और [करणलद्धि] करण, [य] ये पांच लब्धिया है [चत्तारि] जिनमे से आदि की चार [वि सामण्णा] सामान्य है किन्तु [करणं] करणलब्धि होने से [सम्मत्तचारित्ते] सम्यक्त्व / चारित्र अवश्य होता है ।

  बोधिनी 

बोधिनी :


क्षयोपशमविशुद्धि देशनप्रायोग्य करण लब्धयश्र्च;;चतु्स्रोऽपि सामान्यात् करणं सम्यक्त्व चारित्रे ॥३॥
'करणं सम्मत्तचारित्ते' पद से स्पष्ट है कि चार; क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना और प्रायोग्य लब्धियां होने से प्रथमोपशम-सम्यक्त्व होने का नियम नही है किन्तु पांचवी करण लब्धि होने पर वह अवश्य उत्पन्न होता है । पहली चार लब्धियां प्रथमोपशम सम्यत्व होने वाले और नही होने वाले, दोनों प्रकार के जीवों को हो जाती है । अत: प्रथमोपशम सम्यक्त्व होने और नही होने की अपेक्षा ये चार लब्धियां सामान्य / साधारण है जो कि सूत्र में सामण्णा (सामान्य) पद से स्पष्ट है ।