+ क्षयोपशम लब्धि का स्वरुप -
कम्ममलपडलसत्ती पडिसमयमणंतगुणविहीणकमा
होदूणुदीरदि जदा तदा खओवसमलद्धि दु ॥4॥
अन्वयार्थ : [कम्ममलपडल] कर्म-मल-पटल अर्थात अप्रशस्त ज्ञानवर्णीय आदि कर्मों के पटल समूह की [सत्ती] शक्ति (अनुभाग) की [कमा] क्रम से [पडिसमयमणंत] प्रतिसमय अनन्त [गुणविहीण] गुणी हीनता सहित जिस समय [होदूणुदीरदि] उदीरणा होती है [जदा] तब [तदा] उस समय [खओवसमलद्धि] क्षयोपशम लब्धि [दु] होती है ।

  बोधिनी 

बोधिनी :


कर्ममलपटलशक्ति: प्रतिसमयनंतगुणविहीनक्रमा;;भूत्वा उदीर्यते यदा तदा क्षयोपशमलब्धिस्तु ॥४॥
क्षयोपशम लब्धि -- पूर्व संचित कर्मों के अशुभ कर्मपटल के / अप्रशस्त (पाप) ज्ञानवरणीय आदि कर्मों के अनुभाग स्पर्धक का प्रति समय विशुद्धि द्वारा अनन्तगुणे हीनता सहित झरना अर्थात उदीरणा के होना, वाले समय में क्षयोपशम लब्धि होती है । (सन्दर्भ-धवला जी पुष्प ६,पृ-२०४)