+ १४ गणुस्थानों में भाव (मोहनीय की अपेक्षा) -
मिच्छे खलु ओदइओ, विदिये पुण पारणामिओ भावो
मिस्से खओवसिमओ, अविरदसम्मम्हि तिण्णेव ॥11॥
मिथ्यात्वे खलु औदयिको द्वितीये पुनः पारिणामिको भावः ।
मिश्रे क्षायोपशमिकः अविरतसम्यक्त्वे त्रय एव ॥११॥
अन्वयार्थ : प्रथम गुणस्थान में औदयिक भाव होते हैं और द्वितीय गुणस्थान में पारिणामिक भाव होते हैं । मिश्र में क्षायोपशिमक भाव होते हैं और चतुर्थ गुणस्थान में औपशिमक, क्षायिक क्षायोपशिमक इसप्रकार तीनों ही भाव होते हैं ।

  जीवतत्त्वप्रदीपिका 

जीवतत्त्वप्रदीपिका :

आगे गुणस्थानों में औदयिक आदि भावों का होना दिखाते हैं -

मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में दर्शनमोह के उदय से उत्पन्न ऐसा औदयिक भाव, अतत्त्वश्रद्धान है लक्षण जिसका, वह पाया जाता है । खलु अर्थात् प्रकटपने । पुनश्च दूसरे सासादन गुणस्थान में पारिणामिक भाव है क्योंकि यहां दर्शनमोह के उदय आदि की अपेक्षा का जो अभाव, उसका सद्भाव है । पुनश्च मिश्र गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव है । किस कारण ? मिथ्यात्व प्रकृति के सर्वघाति स्पर्धकों के उदय का अभाव, वही है लक्षण जिसका, ऐसा क्षय होते हुये, पुनश्च सम्यग्मिथ्यात्व नामक प्रकृति का उदय विद्यमान होते हुये, पुनश्च उदय को न प्राप्त हुये ऐसे निषेकों का उपशम होते हुये, मिश्र गुणस्थान होता है । इसलिये ऐसे कारण से मिश्र गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव है । पुनश्च अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में औपशमिक सम्यक्त्व, पुनश्च क्षायोपशमिकरूप वेदक सम्यक्त्व, पुनश्च क्षायिक सम्यक्त्व ऐसे नाम धारक तीन भाव हैं, क्योंकि यहां दर्शनमोह का उपशम वा क्षयोपशम वा क्षय होता है ।