जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे कहे हैं ये जो भाव, इनके होने के नियम का कारण कहते हैं -- ऐसे पूर्वोक्त औदयिक आदि भाव कहे, वे नियम से दर्शनमोह के प्रतीत्य अर्थात् आश्रय कर, भणिताः अर्थात् कहे हैं प्रकटपने; क्योंकि अविरत पर्यंत चार गुणस्थानों में चारित्र नहीं है । इसकारण से वे भाव चारित्रमोह का आश्रय करके नहीं कहे हैं । इसकारण सासादन गुणस्थान में अनंतानुबंधी के क्रोधादि किसी एक कषाय का उदय विद्यमान होनेपर भी उसकी विवक्षा न करने से पारिणामिक भाव सिद्धांत में कथन किया है ऐसा तू जान । पुनश्च अनंतानुबंधी के किसी कषाय के उदय की विवक्षा से औदयिक भाव भी है । |