जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे विशेष संख्या की उत्पत्ति का अनुक्रम कहते हैं - सर्व ही पूर्व भंग ऊपर ऊपर के भंगों में एक-एक में मिलते हैं, होते हैं । इसलिये क्रम से परस्पर गुणा करने से विशेष संख्या उपजती है । वही कहते हैं -- पूर्व भंग विकथाप्रमाद चार, वे ऊपर के कषायप्रमादों में एक-एक में होते हैं । इसतरह चार विकथाओं से गुणा करनेपर चार कषायों के सोलह प्रमाद होते हैं । पुनश्च ये नीचे के भंग सोलह हुये, वे ऊपर के इन्द्रिय-प्रमादों में एक- एक में होते हैं । इसतरह सोलह से गुणित पांच इन्द्रियों के अस्सी प्रमाद होते हैं । उसीप्रकार निद्रा में तथा स्नेह में एक-एक ही भेद है । इसलिये एक-एक से गुणा करनेपर भी अस्सी-अस्सी ही प्रमाद होते हैं । इसतरह विशेष संख्या की उत्पत्ति कही । |