+ संख्या (भंग का जोड़) कैसे लाए -
सव्वे पि पुव्वभंगा, उवरिमभंगेसु एक्कमेक्केसु
मेलंति त्ति य कमसो, गुणिदे उप्पज्जदे संखा ॥36॥
सर्वेऽपि पूर्वभंगा उपरिमभंगेषु एकैकेषु ।
मिलंति इति च क्रमशो गुणिते उत्पद्यते संख्या ॥३६॥
अन्वयार्थ : पूर्व के सब ही भंग आगे के प्रत्येक भंग मिलते हैं, इसलिये क्रम से गुणा करने पर संख्या उत्पन्न होती है ।

  जीवतत्त्वप्रदीपिका 

जीवतत्त्वप्रदीपिका :

आगे विशेष संख्या की उत्पत्ति का अनुक्रम कहते हैं -

सर्व ही पूर्व भंग ऊपर ऊपर के भंगों में एक-एक में मिलते हैं, होते हैं । इसलिये क्रम से परस्पर गुणा करने से विशेष संख्या उपजती है । वही कहते हैं --

पूर्व भंग विकथाप्रमाद चार, वे ऊपर के कषायप्रमादों में एक-एक में होते हैं । इसतरह चार विकथाओं से गुणा करनेपर चार कषायों के सोलह प्रमाद होते हैं । पुनश्च ये नीचे के भंग सोलह हुये, वे ऊपर के इन्द्रिय-प्रमादों में एक- एक में होते हैं । इसतरह सोलह से गुणित पांच इन्द्रियों के अस्सी प्रमाद होते हैं । उसीप्रकार निद्रा में तथा स्नेह में एक-एक ही भेद है । इसलिये एक-एक से गुणा करनेपर भी अस्सी-अस्सी ही प्रमाद होते हैं । इसतरह विशेष संख्या की उत्पत्ति कही ।