जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे इन प्रमाद के अन्य प्रकार से पांच प्रकार हैं, उन्हें नाै गाथाओं द्वारा कहते हैं - प्रमाद के व्याख्यान में संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट, समुद्दिष्ट ये पांच प्रकार जानना । वहां प्रमादों के आलाप को कारणभूत जो अक्षसंचार के निमित्त का विशेष, वह संख्या है । पुनश्च इनको स्थापन करना, वह प्रस्तार है । पुनश्च अक्षसंचार परिवर्तन है । संख्या को धरकर अक्ष का लाना नष्ट है । अक्ष को धरकर संख्या का लाना समुद्दिष्ट है । यहां भंग को कहने का विधान, वह आलाप जानना । पुनश्च भेद और भंग का नाम अक्ष जानना । पुनश्च एक भेद अनेक भंगों में क्रम से पलटता है, उसका नाम अक्षसंचार जानना । पुनश्च जितनेवां भंग हो, उतने प्रमाण का नाम संख्या जानना । विशेषार्थ – ऊपर हमने प्रमाद के पंद्रह भेद देखे, उसमें मुख्य पांच प्रकार विकथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा और स्नेह । इनमें से विकथा, कषाय, इन्द्रिय के क्रम से चार, चार और पांच भेद हैं । ये सब एक जीव के एकसाथ तो होते नहीं हैं । चार में से एक विकथा, चार में से एक कषाय, पांच में से एक इन्द्रिय लोलुपता, एक निद्रा और एक स्नेह इसतरह एक साथ पांच प्रमाद होते हैं परंतु इनके भेदों को पलटाने से अलग अलग संयोगों द्वारा अलग अलग भंग होते हैं, जो सब मिलकर ४*४*५*१*१=८० होते हैं । इन भंगों को क्रमवार पहला, दूसरा, तीसरा आदि......कहना उसे संख्या कहते हैं । |