जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे अधःप्रवृत्तकरण के निरुक्ति द्वारा सिद्ध हुये लक्षण को कहते हैं - जिसकारण से किसी जीव के ऊपर-ऊपर के समय संबंधी परिणामों के साथ, अन्य जीव के नीचे-नीचे के समय संबंधी परिणाम सदृश-समान होते हैं, उसकारण से वह प्रथम करण, अधःकरण है - ऐसा णिद्दिट्ठं अर्थात् परमागम में प्रतिपादन किया है । भावार्थ – तीनों करणों के नाम नाना जीवों के परिणामों की अपेक्षा से हैं । वहां जैसी विशुद्धता और संख्या सहित किसी जीव के परिणाम ऊपर के समय संबंधी होते हैं, वैसी विशुद्धता और संख्या सहित किसी अन्य जीव के परिणाम अधःस्तन समय संबंधी भी जिस करण में होते हैं वह अधःप्रवृत्तकरण है । अधःप्रवृत्त अर्थात् नीचे के समय संबंधी परिणामों की समानता को प्रवर्त्ते ऐसे हैं करण अर्थात् परिणाम जिसमें, वह अधःप्रवृत्तकरण है । यहां करण प्रारंभ होने के पश्चात् बहुत-बहुत समय व्यतीत होनेपर जो परिणाम होते हैं, वे ऊपर ऊपर के समय संबंधी जानना । तथा थोड़े थोड़े समय व्यतीत होनेपर जो परिणाम होते हैं, वे अधस्तन अधस्तन समय संबंधी जानना । सो नाना जीवों के इनकी समानता भी हो सकती है । उसका उदाहरण - जैसे, दो जीवों के एक ही काल में अधःप्रवृत्तकरण का प्रारंभ हुआ । वहां एक जीव के द्वितीयादि बहुत समय व्यतीत होनेपर जैसी संख्या वा विशुद्धता सहित परिणाम हुये, वैसी ही संख्या वा विशुद्धता सहित परिणाम द्वितीय जीव के प्रथम समय में भी होते हैं । इसीप्रकार अन्य भी ऊपर नीचे के समय संबंधी परिणामों की समानता इस करण में जानकर इसका नाम अधःप्रवृत्तकरण निरूपित किया है । |