
एदम्हि गुणट्ठाणे, विसरिससमयट्ठियेहिं जीवेहिं
पुव्वमपत्ता जह्मा, होंति अपुव्वा हु परिणामा ॥51॥
अन्वयार्थ : इस गुणस्थान में भिन्न-समयवर्ती जीव, जो पूर्व समय में कभी भी प्राप्त नहीं हुए थे ऐसे अपूर्व परिणामों को ही धारण करते हैं, इसलिये इस गुणस्थान का नाम अपूर्वकरण है ।
जीवतत्त्वप्रदीपिका