
जेहिं अणेया जीवा, णज्जंते बहुविहा वि तज्जादी।
ते पुण संगहिदत्था, जीवसमासा त्ति विण्णेया॥70॥
अन्वयार्थ : जिनके द्वारा अनेक जीव तथा उनकी अनेक प्रकार की जाति जानी जाय, उन धर्मों को अनेक पदार्थों का संग्रह करने वाले होने से जीवसमास कहते हैं, ऐसा समझना चाहिये ॥70॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका