
अट्ठविहकम्मवियला, सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा
अट्ठगुणा किदकिच्चा, लोयग्गणिवासिणो सिद्धा ॥68॥
सदसिव संखो मक्कडि, बुद्धो णेयाइयो य वेसेसी
ईसरमंडलिदंसण, विदूसणट्ठं कयं एदं ॥69॥
अन्वयार्थ : जो ज्ञानावरणादि अष्ट कर्मों से रहित हैं, अनंत-सुखरूपी अमृत के अनुभव करनेवाले शान्तिमय हैं, नवीन कर्मबंध को कारण-भूत मिथ्यादर्शनादि भाव-कर्म-रूपी अञ्जन से रहित हैं, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, अव्याबाध, अवगाहन, सूक्ष्मत्व, अगुरुलघु, ये आठ मुख्य गुण जिनके प्रकट हो चुके हैं, कृतकृत्य हैं, लोक के अग्रभाग में निवास करनेवाले हैं, उनको सिद्ध कहते हैं ।
सदाशिव, सांख्य, मस्करी, बौद्ध, नैयायिक और वैशेषिक, कर्तृवादी , मण्डली इनके मतों का निराकरण करने के लिये ये विशेषण दिये हैं ।
जीवतत्त्वप्रदीपिका