
बादरसुहमेइंदिय, बितिचउरिंदिय असण्णिसण्णी य।
पज्जत्तापज्जत्ता, एवं ते चोद्दसा होंति॥72॥
अन्वयार्थ : एकेन्द्रिय के बादर, सूक्ष्म दो भेद। पुनश्च विकलत्रय के द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तीन भेद। पुनश्च पंचेन्द्रिय के संज्ञी, असंज्ञी दो भेद, इस तरह सात जीव भेद हुये। ये एक एक भेद पर्याप्त-अपर्याप्तरूप है। इस तरह संक्षेप से चौदह जीवसमास होते हैं ॥72॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका