पणजुगले तससहिये, तसस्स दुतिचदुरपणगभेदजुदे।
छद्दुगपत्तेयम्हि य, तसस्स तियचदुरपणगभेदजुदे॥76॥
अन्वयार्थ : पाँच स्थावरों के बादर सूक्ष्म की अपेक्षा दश भेद में - त्रस सामान्य का एक भेद मिलाने से ग्यारह तथा त्रस के विकलेन्द्रिय, सकलेन्द्रिय मिलाने से बारह तथा त्रस के विकलेन्द्रिय, असंज्ञी, संज्ञी मिलाने से तेरह और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय भेद मिलाने से पन्द्रह भेद जीवसमास के होते हैं। पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, नित्यनिगोद, इतरनिगोद इनके बादर सूक्ष्म की अपेक्षा छह युगल और प्रत्येक वनस्पति, इनमें त्रस के उक्त विकलेन्द्रिय, असंज्ञी, संज्ञी ये तीन भेद मिलाने से सोलह और द्वीन्द्रियादि चार भेद मिलाने से सत्रह, तथा पाँच भेद मिलाने से अठारह भेद होते हैं ॥76॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका