
सामण्णेण तिपंती, पढमा विदिया अपुण्णगे इदरे।
पज्जत्ते लद्धिअपज्जत्तेऽपढमा हवे पंती॥78॥
अन्वयार्थ : उक्त उन्नीस भेदों की तीन पंक्ति करनी चाहिये। उसमें प्रथम पंक्ति सामान्य की अपेक्षा से है। और दूसरी पंक्ति अपर्याप्त तथा पर्याप्त अपेक्षा से है। और तीसरी पंक्ति पर्याप्त निर्वृत्त्यपर्याप्त तथा लब्ध्यपर्याप्त की अपेक्षा से है ॥78॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका