
पंच्नखतिर्निखाओ, गब्भजसम्मुच्छिमा तिर्निखाणं।
भोगभुमा गब्भभवा, नरपुण्णा गब्भजा चेव॥91॥
अन्वयार्थ : कर्मभूमिया पंचेन्द्रिय तिर्यंच गर्भज तथा सम्मूर्छन ही होते हैं। भोगभूमिया तिर्यंच गर्भज ही होते हैं और जो पर्याप्त मनुष्य हैं वे भी गर्भज ही होते हैं ॥91॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका