उववादा सुरणिरया, गब्भजसम्मुच्छिमा हु णरतिरिया।
सम्मुच्छिमा मणुस्साऽपज्जत्ता एयवियल्नखा॥90॥
अन्वयार्थ : देवगति और नरकगति में उपपाद जन्म ही होता है। मनुष्य तथा तिर्यंचों में यथासम्भव गर्भ और सम्मूर्छन दोनों ही प्रकार का जन्म होता है, किन्तु लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य और एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियों का सम्मूर्छन जन्म ही होता है ॥90॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका