णेरइया खलु संढा, णरतिरिये तिण्णि होंति सम्मुच्छा।
संढा सुरभोगभुमा, पुरिसिच्छीवेदगा चेव॥93॥
अन्वयार्थ : नारकी नपुंसक ही होते हैं। मनुष्य और तिर्यंचों के तीनों ही (स्त्री पुरुष नपुंसक) वेद होते हैं, सम्मूर्छन मनुष्य और तिर्यंच नपुंसक ही होते हैं। देव और भोगभूमियों के पुरुषवेद और स्त्रीवेद ही होता है ॥93॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका