
सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादस्स तदियसमयम्हि।
अंगुलअसंखभागं, जहण्णमुक्कस्सयं मच्छे॥94॥
अन्वयार्थ : जितना आकाश क्षेत्र शरीर रोकता है उसका नाम यहाँ अवगाहना है। सर्व जघन्य अवगाहना ऋजुगति से उत्पन्न होने के तीसरे समय में सूक्ष्म निगोद लब्धिअपर्याप्तक जीव की घनांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है। तथा स्वयंभूरमण समुद्र के मध्यवर्ती महामत्स्य की उत्कृष्ट अवगाहना होती है ॥94॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका