
अवरे वरसंखगुणे, तच्चरिमो तम्हि रूवसंजुत्ते।
उग्गाहणम्हि पढमा, होदि अवत्तव्वगुणवह्नी॥108॥
अन्वयार्थ : जघन्य को उत्कृष्ट संख्यात से गुणा करने पर संख्यातगुणवृद्धि का उत्कृष्ट स्थान होता है। इस संख्यात गुणवृद्धि के उत्कृष्ट स्थान में ही एक प्रदेश की वृद्धि करने पर अवक्तव्य गुणवृद्धि का प्रथम स्थान होता है ॥108॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका