
रूवुत्तरेण तत्तो, आवलियासंखभागगुणगारे।
तप्पाउग्गे जादे, वाउस्सोग्गाहणं कमसो॥110॥
अन्वयार्थ : इस असंख्यात गुणवृद्धि के प्रथम स्थान के ऊपर क्रम से एक एक प्रदेश की वृद्धि होते होते जब सूक्ष्म अपर्याप्त वायुकाय की जघन्य अवगाहना की उत्पत्ति के योग्य आवली के असंख्यातवें भाग का गुणाकार उत्पन्न हो जाय तब क्रम से उस वायुकाय की जघन्य अवगाहना होती है ॥110॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका