एवं उवरि वि णेओ, पदेसवह्निक्कमो जहाजोग्गं।
सव्वत्थेक्केकम्हि य, जीवसमासाण विच्चाले॥111॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार सूक्ष्म निगोदिया अपर्याप्त से लेकर सूक्ष्म अपर्याप्त वातकाय की जघन्य अवगाहना पर्यन्त प्रदेश वृद्धि के क्रम से अवगाहना के स्थान बताये, उस ही प्रकार आगे भी वात से तेज और तेजस्कायिक से लेकर पर्याप्त पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त सम्पूर्ण जीवसमासों के प्रत्येक अन्तराल में प्रदेशवृद्धिक्रम से अवगाहनास्थानों को समझना चाहिये ॥111॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका