तिण्णिसया छत्तीसा, छवट्ठिसहस्सगाणि मरणाणि।
अंतोमुहुत्तकाले, तावदिया चेव खुद्दभवा॥123॥
अन्वयार्थ : एक अन्तर्मुहर्त में एक लब्ध्यपर्याप्तक जीव छ्यासठ हजार तीन सौ छत्तीस बार मरण और उतने ही भवों - जन्मों को भी धारण कर सकता है। इन भवों को क्षुद्रभव शब्द से कहा गया है ॥123॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका