
इह जाहि बाहिया वि य, जीवा पावंति दारुणं दु्नखं।
सेवंता वि य उभये, ताओ चत्तारि सण्णाओ॥134॥
अन्वयार्थ : जिनसे संक्लेशित होकर जीव इस लोक में और जिनके विषय का सेवन करने से दोनों ही भवों में दारुण दु:ख को प्राप्त होते हैं उनको संज्ञा कहते हैं। उसके विषय भेद के अनुसार चार भेद हैं - आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ॥१३४॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका