
दस सण्णीणं पाणा, सेसेगूणंतिमस्स वेऊणा।
पज्जत्तेसिदरेसु य, सत्त दुगे सेसगेगगूणा॥133॥
अन्वयार्थ : पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय के दश प्राण होते हैं। शेष पर्याप्तकों के एक एक प्राण कम होता जाता है, किन्तु एकेन्द्रियों के दो कम होते हैं। अपर्याप्तक संज्ञी और असंज्ञी पंचेन्द्रिय के सात प्राण होते हैं और शेष अपर्याप्त जीवों के एक-एक प्राण कम होता जाता है ॥133॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका