तिरियंति कुडिलभावं, सुविउलसण्णा णिगिट्ठिमण्णाणा।
अच्चंंतपावबहुला, तम्हा तेरिच्छया भणिया॥148॥
अन्वयार्थ : जो मन-वचन-काय की कुटिलता को प्राप्त हो, जिनकी आहारादि विषयक संज्ञा दसरे मनुष्यों को अच्छी तरह प्रकट हो, जो निकृष्ट अज्ञानी हों तथा जिनमें अत्यन्त पाप का बाहुल्य पाया जाय उनको तिर्यंच कहते हैं ॥148॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका