विदियादि वारदसअड, छत्तिदुणिजपदहिदा सेढी॥153॥
अन्वयार्थ : सामान्यतया सम्पूर्ण नारकियों का प्रमाण घनांगुल के दसरे वर्गमूल से गुणित जगच्छ्रेणी प्रमाण है। द्वितीयादि पृथिवियों में रहने वाले-पाये जाने वाले नारकियों का प्रमाण क्रम से अपने बारहवें, दशवें, आठवें, छट्ठे, तीसरे और दूसरे वर्गमूल से भक्त जगच्छ्रेणी प्रमाण समझना चाहिये ॥153॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका