मदिआवरणखओवसमुत्थविसुद्धी हु तज्जबोहो वा।
भाविंदियं तु दव्वं, देहुदयजदेहचिण्हं तु॥165॥
अन्वयार्थ : इन्द्रिय के दो भेद हैं - भावेन्द्रिय एवं द्रव्येन्द्रिय। मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली विशुद्धि अथवा उस विशुद्धि से उत्पन्न होने वाले उपयोगात्मक ज्ञान को भावेन्द्रिय कहते हैं। और शरीर नामकर्म के उदय से बननेवाले शरीर के चिह्नविशेष को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं ॥165॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका