
मूले कंदे छल्ली, पवाल सालदलकुसुम फलबीजे।
समभंगे सदि णंता, असमे सदि होंति पत्तेया॥188॥
अन्वयार्थ : जिन वनस्पतियों के मूल, कन्द त्वचा, प्रवाल-नवीन कोंपल अथवा अंकुर, क्षुद्रशाखा-टहनी, पत्र, ङ्कूल, ङ्कल तथा बीजों को तोड़ने से समान भंग हो, बिना ही हीरुक के भंग हो जाय, उसको सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं और जिनका भंग समान न हो उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं ॥188॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका