जह भारवहो पुरिसो वहइ भरं गेहिऊण कावलियं।
एमेव वहइ जीवो कम्मभरं कायकावलियं॥202॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार कोई भारवाही पुरुष कावटिका के द्वारा भारका वहन करता है, उस ही प्रकार यह जीव कायरूपी कावटिका के द्वारा कर्मभार का वहन करता है ॥202॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका