
दण्णच्छेदेणवहिद, इट्ठच्छेदेहिं पयदविरलणं भजिदे।
लद्धमिदइट्ठरासीणण्णोण्णहदीए होदि पयदधण॥215॥
अन्वयार्थ : देयराशि के अर्धच्छेदों से भक्त इष्ट राशि के अर्धच्छेदों का प्रकृत विरलन राशि में भाग देने से जो लब्ध आवे उतनी जगह इष्ट राशि को रखकर परस्पर गुणा करने से प्रकृत धन होता है ॥215॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका