दसविहसच्चे वयणे, जो जोगो सो दु सच्चवचिजोगो।
तव्विवरीओ मोसो, जाणुभयं सच्चमोसो त्ति॥220॥
अन्वयार्थ : वक्ष्यमाण जनपद आदि दश प्रकार के सत्य अर्थ के वाचक वचन को सत्यवचन और उससे होने वाले योग - प्रयत्नविशेष को सत्यवचनयोग कहते हैं तथा इससे जो विपरीत है उसको मृषा और जो कुछ सत्य और कुछ मृषा का वाचक है उसको उभयवचनयोग कहते हैं। ऐसा हे भव्य! तू समझ ॥220॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका