ण य सच्चमोसजुत्तो, जो दु मणो सो असच्चमोसमणो।
जो जोगो तेण हवे, असच्चमोसो दु मणजोगो॥219॥
अन्वयार्थ : जो न तो सत्य हो और न मृषा हो उसको असत्यमृषा मन कहते हैं अर्थात् अनुभयरूप पदार्थ के जानने की शक्तिरूप जो भावमन है उसको असत्यमृषा कहते हैं और उसके द्वारा जो योग होता है उसको असत्यमृषामनोयोग कहते हैं ॥219॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका