पणमिय सिरसा णेमिं, गुणरयणविभूसणं महावीरं ।
सम्मत्तरयणणिलयं, पयडिसमुक्कित्तणं वोच्छं ॥1॥
अन्वयार्थ : [गुणरयणविभूसणं] ज्ञानादि गुणरूपी रत्नों के आभूषणों को धारण करने वाले, [महावीरं] मोक्षरूपी लक्ष्मी को देने वाले, [सम्मत्तरयणणिलयं] सम्यक्त्वरूपी रत्न के स्थान, [पणमिय सिरसा णेमिं] ऐसे श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर को मस्तक नवाकर, [पयडिसमुक्कित्तणं वोच्छं] प्रकृति समुत्कीर्तन अधिकार को कहता हूँ ॥१॥