+ सर्वघाती-देशघाती कर्म -
केवलणाणावरणं, दंसणछक्‍कं कसायबारसयं ।
मिच्छं च सव्‍वघादी, सम्मामिच्छं अबंधम्मि ॥39॥
णाणावरणचउक्‍कं, तिदंसणं सम्मगं च संजलणं ।
णव णोकसाय विग्‍घं, छव्‍वीसा देसघादीओ ॥40॥
अन्वयार्थ : केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण और पाँच निद्रा इस प्रकार दर्शनावरण के छः भेद, तथा अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ -- ये बारह कषाय और मिथ्यात्व मोहनीय -- सब मिलकर 20 प्रकृतियाँ सर्वघाती हैं । तथा सम्यग्मिथ्‍यात्‍वप्रकृति भी बन्ध-रहित अवस्था में (अर्थात् उदय और सत्ता में) सर्वघाती है । परन्तु यह सर्वघाती जुदी ही जाति की है ॥३९॥
ज्ञानावरण के चार भेद (केवलज्ञानावरण को छोड़कर), दर्शनावरण के तीन भेद (पूर्व कथित छः भेदों के सिवाय), सम्‍यक्‍त्‍व प्रकृति, संज्वलन क्रोधादि चार, हास्यादि नोकषाय नव और अंतराय के पाँच भेद -- इस तरह छब्बीस देशघाती कर्म हैं (क्योंकि इनके उदय होने पर भी जीव का गुण प्रगट रहता है) ॥४०॥
कर्मों में विभाजन
सर्वघाति देशघाति
21 (केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, पाँच निद्रा, अनंतानुबंधी-4, अप्रत्याख्यानावरण-4, प्रत्याख्यानावरण-4, मिथ्यात्व) + सम्यग्मिथ्यात्व* 26 (ज्ञानावरण-4 [मति-श्रुत-अवधि-मन:पर्यय], दर्शनावरण-3 [चक्षु-अचक्षु-अवधि], सम्यक्त्वप्रकृति, संज्वलन-4, नोकषाय-9, अंतराय-5)
घातिया कर्मों में ही सर्व-घाति और देश-घाति के विकल्प हैं