अंतोमुहुत्त पक्खं, छम्मासं संखऽसंखणंतभवं ।
संजलणमादियाणं, वासणकालो दु णियमेण ॥46॥
अन्वयार्थ : [संजलणमादियाणं] संज्वलन आदि (संज्वलन, प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, और अनन्तानुबंधी) चार कषायों की [वासणकालो] *वासनाकाल क्रम से [अंतोमुहुत्त] अंतर्मुहूर्त, [पक्खं] पक्ष (पंद्रह दिन), [छम्मासं] छ: महीना और [संखऽसंखणंतभवं] संख्यात, असंख्यात तथा अनंतभव हैं, [दु णियमेण] ऐसा निश्चय कर समझना ॥४६॥*वासनाकाल :- उदय का अभाव होने पर भी कषायों का संस्‍कार जितने काल रहे