+ कषायों का स्वभाव -
पढमादिया कसाया, सम्मत्तं देससयलचारित्तं ।
जहखादं घादंति य, गुणणामा होंति सेसावि ॥45॥
अन्वयार्थ : [पढमादिया कसाया] पहली अनन्तानुबन्धी आदिक (अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन ये चार) कषाय, क्रम से [सम्मत्तं] सम्‍यक्‍त्‍व को, [देससयलचारित्तं] देशचारित्र को, सकलचारित्र को [य जहखादं] और यथाख्यात चारित्र को [घादंति] घातती हैं (सम्यक्‍त्‍व आदि को प्रकट नहीं होने देती)[गुणणामा होंति सेसावि] इनके सिवाय दूसरी जो प्रकृतियाँ हैं वे भी सार्थक नाम वाली ही हैं ॥४५॥