
णामं ठवणा दवियं, भावोत्ति चउव्विहं हवे कम्मं ।
पयडी पावं कम्मं, मलं ति सण्णा दु णाममलं ॥52॥
अन्वयार्थ : नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से कर्म चार तरह का है । इनमें पहला भेद संज्ञारूप है । प्रकृति, पाप, कर्म और मल -- ये कर्म की संज्ञाएँ हैं । इन संज्ञाओं को ही नाम निक्षेप से कर्म कहते हैं ॥५२॥