
सरिसासरिसे दव्वे, मदिणा जीवट्ठियं खु जं कम्मं ।
तं एदत्ति पदिट्ठा, ठवणा तं ठावणाकम्मं ॥53॥
अन्वयार्थ : सदृश अर्थात् कर्म सरीखा और असदृश अर्थात् जो कर्म के समान न हो ऐसे किसी भी द्रव्य में अपनी बुद्धि से ऐसी स्थापना करना कि 'जो जीव में कर्म मिले हुए हैं वे ही ये हैं' -- इस अवधानपूर्वक किये गये निवेश को ही स्थापना कर्म कहते हैं ॥53॥