सत्तरसपंचतित्थाहाराणं सुहुमबादरापुव्वो ।
छव्वेगुव्वमसण्णी जहण्णमाऊण सण्णी वा ॥151॥
अन्वयार्थ : सूक्ष्म-सांपराय गुणस्थान में बंधने वाली ज्ञानावरणादि 17 प्रकृतियों की जघन्य स्थिति को दसवें गुणस्थानवर्ती जीव बाँधता है । पुरुष वेद और संज्वलन-4 की जघन्य स्थिति को नवमें गुणस्थानवर्ती जीव, तीर्थंकर प्रकृति तथा आहारकद्विक की जघन्य स्थिति को आठवें गुणस्थानवर्ती जीव, वैक्रियिकषट्क की जघन्य स्थिति को असैनी पंचेन्द्रिय जीव तथा आयुकर्म की जघन्य स्थिति को संज्ञी तथा असंज्ञी दोनों ही बाँधते हैं ॥151॥