+ योगस्थान में गुणहानि रचना का वर्णन -
सव्वे जीवपदेसे दिवड्ढगुणहाणिभाजिदे पढमा ।
उवरिं उत्तरहीणं गुणहाणिं पडि तदद्धकमं ॥228॥
फड्ढयसंखाहि गुणं जहण्णवग्गं तु तत्थ तत्थादी ।
बिदियादिवग्गणाणं वग्गा अविभागअहियकमा ॥229॥
अन्वयार्थ : सब लोक प्रमाण (असंख्यात) जीव के प्रदेशों को डेढ़गुणहानि का भाग देने पर पहली गुणहानि की पहली वर्गणा होती है । इसके बाद एक-एक चय घटाने पर द्वितीयादि वर्गणाओं का प्रमाण होता है । और पूर्व गुणहानि से उत्तर गुणहानि का प्रमाण क्रम से आधा-आधा जानना ॥228॥
जघन्य वर्ग को अपने-अपने स्पद्र्धक की संख्या से गुणा करने पर उस-उस गुणहानि की पहली वर्गणा का प्रमाण होता है । और दूसरी आदि वर्गणा क्रम से वर्ग में एक-एक अविभाग-प्रतिच्छेद बढ़ाने पर होती है ॥229॥
प्रदेशों (परमाणुओं की संख्या) की अपेक्षा अंकसंदृष्टि द्वारा वर्णन
जीव के सर्व प्रदेश = 3100
नाना गुणहानि = 5
एक गुणहानि आयाम = 8
अन्योन्याभ्यस्तराशि = 2^नाना गुणहानि = 2^5 = 32
अंतिम गुणहानि में प्रदेशों का प्रमाण = (सर्व द्रव्य) / (अन्योन्याभ्यस्त राशि-1)
= 3100 / (32-1)
=100
प्रत्येक गुणहानि का द्रव्य
गुणहानि प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम (अंतिम)
द्रव्य 1600 800 400 200 100
अंतिम गुणहानि के द्रव्य से दोगुणा-दोगुणा द्रव्य प्रथम गुणहानि तक करना
प्रत्येक गुणहानि की रचना का विधान
प्रथम गुणहानि प्रथम स्पर्द्धक प्रथम वर्गणा का प्रमाण = सर्व द्रव्यकुछ अधिक डेढ़ गुणहानि
= सर्व द्रव्यकुछ अधिक डेढ़ गुणित 8
= 3100 / 12764
= 256 (जघन्य अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति के प्रदेश)
विशेष (चय) = प्रथम वर्गणा / दो गुणहानि
= 256 / 16
= 16
द्वितीय वर्गणा = प्रथम वर्गणा - चय
= 256 - 16
= 240 (जघन्य से एक अधिक अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति के प्रदेश)
तृतीयादि वर्गणा इसी प्रकार एक-एक चय घटाने पर और एक एक अविभाग प्रतिच्छेद से अधिक शक्ति से युक्त
कुल वर्गणा का प्रमाण = जगतश्रेणी / असं.
द्वितीय स्पर्द्धक प्रथम वर्गणा प्रथम स्पर्द्धक के प्रथम वर्गणा के अविभाग प्रतिच्छेद से दोगुणे अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति से युक्त वर्ग
द्वितीयादि वर्गणा आगे-आगे एक-एक चय घटता और एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद से अधिक
तृतीय स्पर्द्धक प्रथम वर्गणा प्रथम स्पर्द्धक के प्रथम वर्गणा के अविभाग प्रतिच्छेद से तीगुणे अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति से युक्त वर्ग
चतुर्थादि स्पर्द्धक प्रथम वर्गणा प्रथम स्पर्द्धक के प्रथम वर्गणा के अविभाग प्रतिच्छेद से चौगुणे आदि जो विवक्षित स्पद्र्धक हो
: इसी अनुक्रम से वर्गणाओं और स्पर्द्धक का प्रमाण जानना
अंतिम स्पर्द्धक अंतिम वर्गणा प्रथम वर्गणा में एक कम गुणहानि प्रमाण चय घटता और इतने ही अविभाग प्रतिच्छेद बढ़ता है
द्वितीय गुणहानि प्रथम स्पर्द्धक प्रथम वर्गणा का प्रमाण = प्रथम गुणहानि की प्रथम वर्गणा / 2
= 256 / 2
= 128
के अवि.प्रति.का प्रमाण प्रथम गुणहानि के जघन्य वर्ग के अविभाग प्रतिच्छेद x (एक गुणहानि के स्पर्द्धक + 1)
विशेष = प्रथम गुणहानि का विशेष / 2
= 16 / 2
= 8
इसी प्रकार वर्गणा एवं विशेष का प्रमाण आधा-आधा अंतिम गुणहानि के अंतिम स्पर्द्धक की अंतिम वर्गणा तक जानना
इस प्रकार पल्य / असं. गुणहानि हो जाये तब एक योगस्थान होता है
यह सर्व कथन जघन्य योगस्थान का जानना
प्रथमादि गुणहानि संबंधी 8-8 वर्गणाओं में वर्गाें का प्रमाणरूप यंत्र
अष्ठम 144 72 36 18 9
सप्तम 160 80 40 20 10
षष्ठम 176 88 44 22 11
पंचम 192 96 48 24 12
चतुर्थ 208 104 52 26 13
तृतीय 224 112 56 28 14
द्वितीय 240 120 60 30 15
प्रथम 256 128 64 32 16