
| प्रदेशों (परमाणुओं की संख्या) की अपेक्षा अंकसंदृष्टि द्वारा वर्णन | |
|---|---|
| जीव के सर्व प्रदेश | = 3100 |
| नाना गुणहानि | = 5 |
| एक गुणहानि आयाम | = 8 |
| अन्योन्याभ्यस्तराशि | = 2^नाना गुणहानि = 2^5 = 32 |
| अंतिम गुणहानि में प्रदेशों का प्रमाण | = (सर्व द्रव्य) / (अन्योन्याभ्यस्त राशि-1) = 3100 / (32-1) =100 |
| प्रत्येक गुणहानि का द्रव्य | |||||
|---|---|---|---|---|---|
| गुणहानि | प्रथम | द्वितीय | तृतीय | चतुर्थ | पंचम (अंतिम) |
| द्रव्य | 1600 | 800 | 400 | 200 | 100 |
| अंतिम गुणहानि के द्रव्य से दोगुणा-दोगुणा द्रव्य प्रथम गुणहानि तक करना | |||||
| प्रत्येक गुणहानि की रचना का विधान | |||
|---|---|---|---|
| प्रथम गुणहानि | प्रथम स्पर्द्धक | प्रथम वर्गणा का प्रमाण | = सर्व द्रव्यकुछ अधिक डेढ़ गुणहानि = सर्व द्रव्यकुछ अधिक डेढ़ गुणित 8 = 3100 / 127⁄64 = 256 (जघन्य अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति के प्रदेश) |
| विशेष (चय) | = प्रथम वर्गणा / दो गुणहानि = 256 / 16 = 16 | ||
| द्वितीय वर्गणा | = प्रथम वर्गणा - चय = 256 - 16 = 240 (जघन्य से एक अधिक अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति के प्रदेश) | ||
| तृतीयादि वर्गणा | इसी प्रकार एक-एक चय घटाने पर और एक एक अविभाग प्रतिच्छेद से अधिक शक्ति से युक्त | ||
| कुल वर्गणा का प्रमाण | = जगतश्रेणी / असं. | ||
| द्वितीय स्पर्द्धक | प्रथम वर्गणा | प्रथम स्पर्द्धक के प्रथम वर्गणा के अविभाग प्रतिच्छेद से दोगुणे अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति से युक्त वर्ग | |
| द्वितीयादि वर्गणा | आगे-आगे एक-एक चय घटता और एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद से अधिक | ||
| तृतीय स्पर्द्धक | प्रथम वर्गणा | प्रथम स्पर्द्धक के प्रथम वर्गणा के अविभाग प्रतिच्छेद से तीगुणे अविभाग प्रतिच्छेद रूप शक्ति से युक्त वर्ग | |
| चतुर्थादि स्पर्द्धक | प्रथम वर्गणा | प्रथम स्पर्द्धक के प्रथम वर्गणा के अविभाग प्रतिच्छेद से चौगुणे आदि जो विवक्षित स्पद्र्धक हो | |
| : | इसी अनुक्रम से वर्गणाओं और स्पर्द्धक का प्रमाण जानना | ||
| अंतिम स्पर्द्धक | अंतिम वर्गणा | प्रथम वर्गणा में एक कम गुणहानि प्रमाण चय घटता और इतने ही अविभाग प्रतिच्छेद बढ़ता है | |
| द्वितीय गुणहानि | प्रथम स्पर्द्धक प्रथम वर्गणा | का प्रमाण | = प्रथम गुणहानि की प्रथम वर्गणा / 2 = 256 / 2 = 128 |
| के अवि.प्रति.का प्रमाण | प्रथम गुणहानि के जघन्य वर्ग के अविभाग प्रतिच्छेद x (एक गुणहानि के स्पर्द्धक + 1) | ||
| विशेष | = प्रथम गुणहानि का विशेष / 2 = 16 / 2 = 8 | ||
| इसी प्रकार वर्गणा एवं विशेष का प्रमाण आधा-आधा अंतिम गुणहानि के अंतिम स्पर्द्धक की अंतिम वर्गणा तक जानना | |||
| इस प्रकार पल्य / असं. गुणहानि हो जाये तब एक योगस्थान होता है | |||
| यह सर्व कथन जघन्य योगस्थान का जानना | |||
| प्रथमादि गुणहानि संबंधी 8-8 वर्गणाओं में वर्गाें का प्रमाणरूप यंत्र | |||||
|---|---|---|---|---|---|
| अष्ठम | 144 | 72 | 36 | 18 | 9 |
| सप्तम | 160 | 80 | 40 | 20 | 10 |
| षष्ठम | 176 | 88 | 44 | 22 | 11 |
| पंचम | 192 | 96 | 48 | 24 | 12 |
| चतुर्थ | 208 | 104 | 52 | 26 | 13 |
| तृतीय | 224 | 112 | 56 | 28 | 14 |
| द्वितीय | 240 | 120 | 60 | 30 | 15 |
| प्रथम | 256 | 128 | 64 | 32 | 16 |