पणमिय सुरेंदपूजियपयकमलं वड्ढमाणममलगुणं ।
पच्चयसत्तावण्णं वोच्छे हं सुणह भवियजणा ॥१॥
प्रणम्य सुरेन्द्रपूजितपदकमलं वर्धमानं अमलगुणं ।
प्रत्ययसप्तपंचाशत् वक्ष्येऽहं शृणुत भव्यजना: ॥
अन्वयार्थ : सुरेन्द्र से पूजित हैं चरण कमल जिनके, ऐसे अमल गुणों से सहित श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार करके आस्रव के कारणभूत सत्तावन भेदों को मैं कहूँगा । हे भव्यजीवों! तुम उन्हें सावधानचित्त होकर सुनो ॥१॥