मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगा य आसवा होंति ।
पण बारस पणवीसा पण्णरसा होंति तब्भेया ॥२॥
मिथ्यात्वमविरमणं कषाया योगाश्च आस्रवा भवन्ति ।
पंच द्वादश पंशविंशति: पंचदश भवन्ति तद्भेदा: ॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ये आस्रव कहलाते हैं । ये आस्रव के लिए कारणभूत हैं अत: इन्हें आस्रव कह देते हैं । इनके उत्तर भेद क्रम से मिथ्यात्व के पाँच, अविरति के बारह, कषाय के पच्चीस और योग के पंद्रह भेद होते हैं ॥२॥