वेगुव्वाहारदुगं ण होइ तिरियेसु सेसतेवण्णा॥
एवं भोगावणिजे संढ विरहिऊण वावण्णा ॥२९॥
वैक्रियिकाहारद्विकं न भवति तिर्यक्षु शेषत्रिपंचाशत् ।
एवं भोगावनीजेषु षंढं विरह्य द्वापंचाशत् ॥
अन्वयार्थ : तिर्यंचों में वैक्रियकद्विक, आहारकद्विक नहीं होते हैं अत: त्रेपन आस्रव होते हैं । इसी प्रकार से भोगभूमियों में वैक्रियकद्विक, आहारकद्विक एवं नपुंसकवेद से रहित ५२ आस्रव होते हैं ॥२९॥